सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय ,पहली कविता , पत्नी का नाम ,रचनाएं ,देहांत ,अंतिम काव्य, बचपन का नाम ,कविताओं का संग्रह(Sumitranandan Pant Biography , Death in Hindi )
सुमित्रानंदन पंत हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि थे। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है।
सुमित्रानंदन पंत को हिंदी में ‘वर्ड्सवर्थ’ कहा जाता है। सुमित्रानंदन पंत की गिनती ऐसे लेखकों में की जाती है, जिनका प्रकृति का चित्रण समकालीन कवियों में सर्वश्रेष्ठ था।
साल 1968 में सुमित्रानंदन पंत को उनके प्रसिद्ध कविता संग्रह “चिदंबरा” के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय
असली नाम (Real Name ) | सुमित्रानंदन पंत |
अन्य नाम (Other Name ) | गोसाई दत्त |
जन्म तारीख (Date of birth) | 20 मई 1900 |
जन्म स्थान (Place of born ) | कौसानी गांव, अल्मोड़ा (उत्तराखंड) |
मृत्यु तिथि (Date of Death ) | 28 दिसंबर 1977 |
मृत्यु का स्थान (Place of Death) | इलाहाबाद का संगम शहर |
मृत्यु का कारण (Death Cause) | शरीर की कई बीमारियाँ |
उम्र( Age) | 77 वर्ष (मृत्यु के समय ) |
स्कूल (School ) | बनारस के स्कूल से |
कॉलेज (Collage ) | इलाहाबाद विश्वविद्यालय |
गृहनगर (Hometown ) | कौसानी गांव, अल्मोड़ा (उत्तराखंड) |
पेशा (Profession) | लेखक, कवि |
भाषा (Language) | हिंदी |
रचनाएं (Notable Work ) | पल्लव, पीतांबरा एवं सत्यकाम |
शैली (Genre ) | गीतात्मक |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
आँखों का रंग (Eye Color) | काला |
बालो का रंग (Hair Color ) | सफ़ेद |
नागरिकता(Nationality) | भारतीय |
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | अवैवाहिक |
सुमित्रानंदन पंत का जन्म एवं प्रारंभिक जीवन
सात साल की उम्र वह उम्र होती है जब बच्चे पढ़ना-लिखना शुरू करते हैं। लेकिन जब इस उम्र का बच्चा कविता लिखना शुरू करता है तो उसकी भावनाओं की गहराई को समझने के लिए भी एक गहरी समझ की जरूरत होती है।ऐसा था सुमित्रा नंदन पंत का बचपन।
सुमित्रा नंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को उत्तराखंड के कुमाऊं की पहाड़ियों में स्थित बागेश्वर के एक गांव कौसानी में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित गंगादत्त एवं माँ का नाम सरस्वती देवी था। वह गंगादत्त पंत की आठवीं संतान थे।
उनके जन्म के छह घंटे के भीतर ही उनकी मां का देहांत हो गया। उनका पालन-पोषण उनकी दादी के हाथों हुआ। सात भाई-बहनों में पंत सबसे छोटे थे।उनके परिवार के सदस्यों ने उनका नाम गोसाईं दत्त रखा।
सुमित्रानंदन पंत की शिक्षा
- उन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा अल्मोड़ा में पूरी की और 18 साल की उम्र में बनारस में अपने भाई के पास चले गये ।
- यहीं से उन्होंने हाईस्कूल की परीक्षा पास की। उन्हें गोसाईं दत्त नाम पसंद नहीं आया। फिर उन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रा नंदन पंत कर लिया।
- हाई स्कूल पास करने के बाद, सुमित्रा नंदन पंत स्नातक करने के लिए इलाहाबाद गए और वहां इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। लेकिन ग्रेजुएशन को बीच में ही छोड़कर वे महात्मा गांधी के समर्थन में सत्याग्रह आंदोलन में कूद पड़ी ।
- इसके बाद सुमित्रा नंदन पंत अकादमिक अध्ययन नहीं कर सकीं, लेकिन घर पर ही उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और बंगाली साहित्य का अध्ययन करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी।
सुमित्रानंदन पंत का परिवार –
पिता का नाम (Father’s Name) | पंडित गंगादत्त |
माता का नाम (Mother’s Name) | सरस्वती देवी |
भाई/बहन का नाम (Sibling ’s Name) | 8 भाई बहन (नाम ज्ञात नहीं ) |
सुमित्रानंदन पंत का प्रारंभिक साहित्यिक जीवन
- सुमित्रानंदन पंत ने 7 साल की उम्र में कक्षा 4 में लिखना शुरू कर दिया था। कवि के रूप में उनकी साहित्यिक यात्रा ई. में शुरू हुई। 1918 से बनारस में शुरू हुआ।
- वे अपने बड़े भाई से प्रभावित थे और अल्मोड़ा अखबार , सरस्वती , वेंकटेश्वर समाचार जैसे समाचार पत्रों को पढ़ने से उनकी कविता में रुचि विकसित हुई।
- कॉलेज की पढाई के दौरान उन्हें सरोजिनी नायडू, रवींद्रनाथ टैगोर और अन्य अंग्रेजी भाषा के रोमांटिक कवियों के कार्यों से अवगत कराया गया ।
- उनकी कविता लिखने में रूचि इलाहाबाद में विकसित हुई । उन्होंने हमेशा विश्वकल्याण का समर्थन किया। कुछ साल बाद उन्हें एक बड़े वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा जिसमें उन्हें अपने कर्ज चुकाने के लिए अपनी जमीन और घर से अलग होना पड़ा।
सुमित्रानंदन पंत की लेखन शैली
सुमित्रा नंदन पंत को आधुनिक हिंदी साहित्य का अग्रणी कवि माना जाता है। अपनी रचना के माध्यम से पंत ने भाषा को सुधारने के साथ-साथ भाषा को संस्कृति देने का भी प्रयास किया।
जिस प्रकार उन्होंने अपने लेखन के जादू से प्राकृतिक सौन्दर्य को शब्दों में ढाला, उन्हें हिन्दी साहित्य का ‘वर्ड्सवर्थ’ कहा गया।
रवींद्रनाथ टैगोर के अलावा, पंत की रचनाएँ शैली, कीट्स, टेनीसन आदि अंग्रेजी कवियों की रचनाओं से भी प्रभावित रही हैं। हालाँकि पंत को प्रकृति का कवि माना जाता है, लेकिन वास्तव में वे मानव सौंदर्य और आध्यात्मिक चेतना के कुशल कवि भी थे। .
सुमित्रानंदन की रचनात्मक यात्रा
- यह 1907 से 1918 का दौर था जब पंत पर्वतीय घाटियों में अपनी रचनात्मकता की सिंचाई कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने प्राकृतिक सौन्दर्य को जितना अनुभव किया और समझा, उसे छोटी-छोटी कविताओं में डालने की कोशिश की।
- पंत की उस काल की कविताओं का संकलन और प्रकाशन 1927 में “वीणा” नाम से हुआ। इससे पूर्व वर्ष 1922 में सुमित्रानंदन पंत की पहली पुस्तक “उच्छव” और दूसरी “पल्लव” नाम से प्रकाशित हुई थी।
- फिर “ज्योत्सना” और “गुंजन” प्रकाशित हुए। पंत की ये तीन कृतियाँ कला और सौन्दर्य की अनुपम कृति मानी जाती हैं। हिन्दी साहित्य में इस काल को पंत का स्वर्ण काल भी कहा जाता है।
- वर्ष 1930 में पंत महात्मा गांधी के साथ ‘नमक आंदोलन’ में शामिल हुए और देश सेवा के प्रति गंभीर हो गए। इस दौरान वे कुछ समय कलाकांकर में रहे।
- यहां उन्हें ग्रामीण जीवन की अनुभूति से परिचित होने का अवसर मिला। किसानों की दुर्दशा के प्रति उनकी सहानुभूति उनकी कविता ‘वे आंखें’ में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है-
“अंधेरे की गुहा की तरह मन उन आँखों से डरता है,
उनमें दूर-दूर तक भरा हुआ, जीर्ण-शीर्ण दुःख का मौन रोना था।
- सुमित्रा नंदन पंत ने न केवल अपनी रचना के माध्यम से प्रकृति की सुंदरता की प्रशंसा की है, बल्कि उन्होंने प्रकृति के माध्यम से मानव जीवन के बेहतर भविष्य की कामना भी की है। उनकी कविता की ये पंक्तियाँ उनकी खुद की सुंदरता खोलती हैं।
- उनकी साहित्यिक यात्रा के तीन प्रमुख चरण माने जाते हैं – पहले चरण में वे छायादार, दूसरे चरण में प्रगतिशील और तीसरे चरण में अध्यात्मवादी हैं। ये तीन चरण उसके जीवन में आने वाले परिवर्तनों के भी प्रतीक हैं।
- स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान मार्क्स और फ्रायड की विचारधारा से प्रभावित होकर मानवता को करीब से देखने के कारण पंत प्रगतिशील हो गए।
- बाद के वर्षों में, जब वे पांडिचेरी में अरबिंदो आश्रम गए , तो वे वहां श्री अरबिंदो के दर्शन के प्रभाव में आगए । इसके बाद उनकी रचनाओं पर अध्यात्मवाद का प्रभाव पड़ा।
- साल 1938 में, सुमित्रानंदन पंत ने हिंदी साहित्य को व्यापक रूप देने के उद्देश्य से “रूपाभ” नामक एक प्रगतिशील मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी शुरू किया।
- इस दौरान वे प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुडी रही । आजीविका के लिए पंत ने 1955 से 1962 तक ऑल इंडिया रेडियो में मुख्य निर्माता के रूप में काम किया।
सुमित्रानंदन पंत के कार्य
- सुमित्रा नंदन पंत की रचनात्मक यात्रा, जो सात साल की छोटी उम्र में 1907 में शुरू हुई, 1969 में प्रकाशित उनकी अंतिम रचना “गिथेंस” के साथ समाप्त हुई।
- इस अवधि के दौरान प्रकाशित उनके प्रमुख कविता संग्रह वीणा, गांधी, पल्लव हैं। , गुंजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्य, स्वर्णकिरण, स्वर्णधुली, युगान्तर, उत्तरा, युगपथ, चिदंबर, काल और बुद्धचंद और लोकायतन।
- इस दौरान उनकी कहानियों का एक संग्रह “पांच कहानियां” भी प्रकाशित हुआ। वर्ष 1960 में प्रकाशित उपन्यास “हर” और 1963 में प्रकाशित आत्मकथात्मक संस्मरण “सिक्सटी इयर्स: एक रेखा” भी उनकी अमूल्य कृतियों में शामिल हैं।
- उन्होंने एक महाकाव्य भी लिखा था जो “लोकायतन” नाम से प्रकाशित हुआ था। यह उपन्यास उनकी विचारधारा और लोकजीवन के बारे में उनकी सोच की झलक देता है।
सुमित्रानंदन पंत के सम्मान और पुरस्कार –
- सुमित्रा नंदन पंत को उनकी अमूल्य रचनाओं के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं।
- वर्ष 1960 में, उन्हें 1958 में प्रकाशित उनके कविता संग्रह “काला और बुद्ध चंद” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- उन्हें वर्ष 1961 में पद्म भूषण पुरस्कार मिला था।
- वर्ष 1968 में, पंत को उनके प्रसिद्ध के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था।
- कविता संग्रह “चिदंबरा”। उन्हें “लोकायतन” कार्य के लिए सोवियत संघ की सरकार द्वारा नेहरू शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सुमित्रानंदन पंत का निधन
28 दिसंबर 1977 को इलाहाबाद के संगम शहर में हिंदी साहित्य के इस कट्टर उपासक की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद उनके सम्मान में सरकार ने उत्तराखंड के कुमाऊं में उनके जन्मस्थान गांव कौसानी में उनके नाम पर एक संग्रहालय बनाया है. यह संग्रहालय देश के युवा साहित्यकारों के लिए तीर्थ स्थान है और हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।
सुमित्रानंदन की कृतियां और रचनाएं (Krtiyaan aur Rachanaen) –
पंत जी की कृतियां निम्नलिखित हैं-
काव्य- वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, स्वर्ण किरण, युगांत, युगवाणी, लोकायतन, चिदंबरा।
नाटक- रजतरश्मि, शिल्पी, ज्योत्सना।
उपन्यास- हार
पंत जी की अन्य रचनाएं हैं- पल्लविनी, अतिमा, युगपथ, ऋता, स्वर्ण किरण, उत्तरा, कला और बूढ़ा चांद, शिल्पी, स्वर्णधूलि आदि।
सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख कृतियां :-
कविता संग्रह / खंडकाव्य
- उच्छवास
- पल्लव
- वीणा
- ग्रंथि
- गुंजन
- ग्राम्या
- युगांत
- युगांतर
- स्वर्णकिरण
- स्वर्णधूलि
- कला और बूढ़ा चांद
- लोकायतन
- सत्यकाम
- मुक्ति यज्ञ
- तारा पथ
- मानसी
- युगवाणी
- उत्तरा
- रजतशिखर
- शिल्पी
- सौंदण
- अंतिमा
- पतझड़
- अवगुंठित
- मेघनाथ वध
- ज्योत्सना
चुनी गईं रचनाओं के संग्रह
- ग्रंथि’(1920)
- वीणा’ (1927)
- पल्लव’ (1928)
- गुंजन’ (1932)
- ‘युगान्त’ (1936)
- युगवाणी’ (1939)
- ग्राम्या’ (1940)
- स्वर्ण किरण’ (1947)
- स्वर्णधूलि’ (1947)
- उत्त्रा’ (1949)
- युगपथ’ (1948)
- अतिमा’ (1955)
FAQ
सुमित्रानंदन पंत की भाषा कौन सी है?
हिंदी
पंत के बचपन का नाम क्या है?
गंगा दंत पंथ
सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु कब हुई?
सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु 28 दिसंबर 1977 को हुई थी.
पंत की पहली कविता कौन सी है?
‘तुतली बोली में एक बालिका का उपहार’
सुमित्रानंदन पंत का प्रिय छंद क्या है?
सुमित्रानंदन पंत को उपमा और रूपक अलंकार से बहुत प्यार था।
सुमित्रानंदन पंत को कौन सा पुरस्कार मिला था?
साहित्य अकादमी पुरस्कार ,पद्म भूषण पुरस्कार एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार
सुमित्रानंदन पंत की प्रथम रचना कौन सी है?
‘गिरजे का घण्टा’ (वर्ष 1916)
सुमित्रानंदन पंत ने गांधी जी के भाषण से प्रभावित होकर अपनी अधूरी शिक्षा छोड़ कौन से आंदोलन में सक्रिय हुए?
सन् 1919 में गांधी जी के एक भाषण से प्रभावित होकर उन्होंने बिना परीक्षा दिए ही अपनी शिक्षा अधूरी छोड़ दी और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हो गए.
सुमित्रानंदन पंत जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार कब मिला?
वर्ष 1968 में
कवि सुमित्रानंदन पंत के पिता का नाम क्या है?
पंडित गंगादत्त
सुमित्रानंदन पंत का अंतिम काव्य कौन सा है?
सिन्धुमन्थन
सुमित्रानंदन पंत के कितने बच्चे थे?
सुमित्रानंदन पंत ने जीवनभर भर विवाह नहीं किया था.
सुमित्रानंदन पंत की पत्नी का नाम?
सुमित्रानंदन पंत अवैवाहिक थे. उन्होंने कभी भी शादी नहीं की.
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अंतिम कुछ शब्द –
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