बिरसा मुंडा का जीवन परिचय,जीवनी ,बायोग्राफी ,जयंती ,परिवार,इतिहास , मृत्यु (Birsa Munda Biography in Hindi, Birth, Death, Cast, ,History )
एक लोक नायक और मुंडा जनजाति के एक आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे। वह 19वीं शताब्दी की शुरुआत में आदिवासियों के हितों के लिए संघर्ष करने वाले बिरसा मुंडा ने तब के ब्रिटिश शासन से भी लोहा लिया था। उनके योगदान के चलते ही उनकी तस्वीर भारतीय संसद के संग्रहालय में लगी हुई है
तत्कालीन ब्रिटिश शासकों के उत्पीड़न और अन्याय से क्रोधित होकर उन्होंने स्वदेशी मुंडाओं को संगठित करके मुंडा विद्रोह की शुरुआत की। विद्रोहियों के लिए उन्हें बिरसा भगवान के नाम से जाने जाते थे ।
‘धरती माँ ‘ या पृथ्वी पिता के रूप में जाने जाने वाले, बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को अपने धर्म का अध्ययन करने और अपनी सांस्कृतिक जड़ों को न भूलने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने अपने लोगों को अपनी जमीन के मालिक होने और उन पर अपना अधिकार जताने के महत्व को महसूस करने के लिए प्रभावित किया।
बिरसा मुंडा का जीवन परिचय
नाम ( Name) | बिरसा मुंडा |
असली नाम (Real Name ) | बिरसा डेविड (कुछ समय के लिए ईशाई धर्म अपनाने के बाद ) |
निक नेम (Given Name by People ) | धरती बाबा |
जन्म तारीख (Date of Birth) | 15 नवंबर 1875 |
उम्र (Age) | 24 वर्ष (मृत्यु के समय ) |
जन्म स्थान (Birth Place) | उलिहातु गांव, लोहरदगा जिला , बंगाल प्रेसीडेंसी ( अब झारखंड के खूंटी जिले ) |
मृत्यु की तारीख Date of Death | 9 जून 1900 |
मृत्यु का स्थान (Place of Death) | रांची जेल, लोहरदगा जिला, बंगाल प्रेसीडेंसी |
मृत्यु का कारण (Death Cause) | हैजा बीमारी की वजह से मौत |
स्कूल (School ) | जर्मन मिशन स्कूल |
राष्ट्रीयता (Nationality) | भारतीय |
गृहनगर (Hometown) | उलिहातु गांव, लोहरदगा जिला , बंगाल प्रेसीडेंसी |
धर्म (Religion) | हिंदू (कुछ समय के लिए ईशाई धर्म में परिवर्तन हो गए थे ) |
पेशा (Profession) | भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और धार्मिक नेता |
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | विवाहित |
बिरसा मुंडा का जन्म और प्रारंभिक जीवन (Born & Early life )
बिरसा मुंडा का जन्म 1875 में झारखंड राज्य के रांची में हुआ था। उनके पिता, चाचा, ताऊ सभी ने ईसाई धर्म स्वीकार किया। बिरसा के पिता ‘सुगना मुंडा’ जर्मन प्रचारकों के सहयोगी थे।
बिरसा ने अपना बचपन अपने घर में, ननिहाल में और अपने सास-ससुर की बकरियों को चराने में बिताया।
बाद में, उन्होंने कुछ दिनों के लिए चाईबासा में जर्मन मिशन स्कूल में पढ़ाई की। लेकिन स्कूलों में अपनी आदिवासी संस्कृति का उपहास बिरसा ने बर्दाश्त नहीं किया।
इस पर वे पुजारियों और उनके धर्म का मजाक भी उड़ाने लगे। फिर क्या था , ईसाई प्रचारकों ने उसे स्कूल से निकाल दिया।
बिरसा मुंडा का परिवार ( Birsa Munda Family)
पिता का नाम (Father’s Name) | सुगना मुंडा |
माता का नाम (Mother’s Name) | करमी हटू |
भाई का नाम (Brother ’s Name) | कोमता मुंडा (बड़ा ) , पासना मुंडा (छोटा ) |
बहन का नाम (Sister ’s Name) | चंपा मुंडा (बड़ी ) , दासकिर मुंडा (छोटी ) |
‘धरती बाबा’ के नाम से पूजे जाते थे मुंडा (Public trust on Birsa Munda)
स्कूल से निकलने के बाद बिरसा के जीवन में एक नया मोड़ आया। उन्होंने स्वामी आनंद पांडे के संपर्क में आकर हिंदू धर्म और महाभारत के चरित्रों को समझा ।
कहा जाता है कि 1895 में कुछ ऐसी अलौकिक घटनाएं घटीं, जिससे लोग बिरसा को भगवान का अवतार मानने लगे। लोगों में यह विश्वास प्रबल हो गया कि बिरसा के स्पर्श मात्र से रोग ठीक हो जाते हैं।
जनता का बिरसा में दृढ़ विश्वास था, जिससे बिरसा को अपना प्रभाव बढ़ाने में मदद मिली। उन्हें सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटने लगे। बिरसा ने पुराने अंधविश्वासों का खंडन किया। लोगों को हिंसा और ड्रग्स से दूर रहने की सलाह दी।
उनकी बातों का असर यह हुआ कि ईसाई धर्म अपनाने वालों की संख्या तेजी से घटने लगी और जो मुंडा ईसाई बन गए थे, वे फिर से अपने पुराने धर्म में लौटने लगे।
बिरसा मुंडा की अन्याय के खिलाफ लड़ाई एवं गिरप्तारी ( Birsa Munda Arrested )
साल 1856 में लगभग 600 जागीर थे, और वे एक गाँव से लेकर 150 गाँवों तक फैले हुए थे। लेकिन 1874 तक कुछ जमींदारों द्वारा पेश गए नए अधिकारों के मुताबिक किसानों के सारे अधिकार को समाप्त कर दिया गया था और जबरदस्ती किसानो की ज्यादातर जमीन हड़प ली थी।
कुछ गांवों के किसान तो अपना मालिकाना अधिकार पूरी तरह से खो चुके थे और खेतिहर मजदूरों की स्थिति में सिमट गए थे।
बिरसा मुंडा ने भी लोगों को किसानों का शोषण करने वाले जमींदारों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया। यह देख ब्रिटिश सरकार ने उन्हें भीड़ जमा करने से रोक दिया। बिरसा ने कहा कि मैं अपनी जाति को अपना धर्म सिखा रहा हूं।
पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने का प्रयास किया, लेकिन ग्रामीणों ने उन्हें बचा लिया। जल्द ही उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और दो साल के लिए हजारीबाग जेल में डाल दिया गया। बाद में उन्हें इस चेतावनी के साथ छोड़ दिया गया कि वे कोई प्रचार नहीं करेंगे।
बिरसा मुंडा द्वारा आदिवासियो के संगठन का निर्माण (Organization Building By Birsa Munda )
लेकिन बिरसा के मानने वाले कहाँ थे, जाने के बाद, उन्होंने अपने अनुयायियों की दो टीमों का गठन किया। एक दल मुंडा धर्म का प्रचार करने लगा तो दूसरा राजनीतिक कार्य करने लगा। नए युवाओं को भी भर्ती किया गया है। इस पर सरकार ने फिर उनकी गिरफ्तारी का वारंट निकाला, लेकिन बिरसा मुंडा पकड़े नहीं गए.
इस बार सत्ता पर हावी होने के उद्देश्य से आंदोलन आगे बढ़ा। यूरोपीय अधिकारियों और पुजारियों को हटा दिया गया और बिरसा के नेतृत्व में एक नया राज्य स्थापित करने का निर्णय लिया गया।
बिरसा मुंडा की मृत्यु ( Birsa Munda Death )
यह आंदोलन 24 दिसंबर 1899 को शुरू हुआ। पुलिस थानों पर तीरों से हमला किया गया और आग लगा दी गई। सेना की भी सीधी मुठभेड़ हुई, लेकिन तीर कमान गोलियों का सामना नहीं कर पाई। बिरसा मुंडा के साथी बड़ी संख्या में मारे गए।
3 मार्च, 1900 को, उन्हें उनकी आदिवासी गुरिल्ला सेना के साथ, जमकोपाई जंगल, चक्रधरपुर में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था।
पैसे के लालच में उसकी जाति के दो लोगों ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया।बिरसा सहित उसके सौ से अधिक साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। उसे फांसी की सजा सुनाई गई थी।
9 जून 1900 को 25 वर्ष की आयु में रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई, जहां उन्हें कैद किया गया था। ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि वह हैजा से मर गया, हालांकि उसने बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखाए, अफवाहों को हवा दी कि उसे जहर दिया गया हो सकता है।
गिरफ्तार किए गए अन्य दो को फाँसी पर लटका दिया गया, 12 लोगो को बरी कर दिया गया और 63 लोगो को लंबी उम्र जेल की सजा दी गई।
FAQ
बिरसा मुंडा कौन थे in Hindi ?
बिरसा मुंडा एक लोक नायक और मुंडा जनजाति के एक आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे। वह 19वीं शताब्दी की शुरुआत में आदिवासियों के हितों के लिए संघर्ष करने वाले बिरसा मुंडा ने तब के ब्रिटिश शासन से भी लोहा लिया था।
बिरसा मुंडा कौन थे उन्होंने जनजाति समाज के लिए क्या किया ?
बिरसा मुंडा एक लोक नायक और मुंडा जनजाति के एक आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे।वह19वीं शताब्दी की शुरुआत में आदिवासियों के हितों के लिए ब्रिटिश शासन से भी भीड़ गए थे ।
बिरसा मुंडा को झारखंड का भगवान क्यों कहा जाता है ?
बिरसा मुंडा ने झारखंड के लोगो के हिट एवं उन पर होने जुल्मो के लिए अंग्रेजी सरकार से भीड़ गए थे और अपने जीवन की बलि दे दी थी जिसकी वजह से बिरसा मुंडा को झारखंड का भगवान कहा जाता है।
बिरसा मुंडा कौन से जाति के थे ?
बिरसा मुंडा झारखण्ड की एक मुंडा जनजाति से ताल्लुक रखते थे।
बिरसा मुंडा के माता पिता कौन थे ?
बिरसा मुंडा के पिता सुगना मुंडा एवं माँ करमी हटू थी।
बिरसा मुंडा विद्रोह कब हुआ ?
साल 1895 से 1900 तक बीरसा या बिरसा मुंडा का विद्रोह ‘ऊलगुलान’ चला।
आदिवासी के भगवान कौन है ?
आदिवासीयो के भगवान बिरसा मुंडा है।
बिरसा मुंडा की मौत कैसे हुई ?
ऐसा माना जाता है की हैजा बीमारी के कारन उनकी मौत हुई लेकिन अभी तक इस बात का पूरी तरह से पता नहीं चल पाया है की कैसे फांसी देने से एक दिन पहले मौत अचानक हैजा से हो गई।
बिरसा मुंडा का निधन कब हुआ ?
9 जून 1900 को 25 वर्ष की आयु में बिरसा मुंडा की रांची जेल में मृत्यु हो गई।
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अंतिम कुछ शब्द –
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