महाराजा छत्रसाल का जीवन परिचय, जीवनी, इतिहास, जयंती 2021, वंशज, समाधि, यूनिवर्सिटी, जन्म, धर्म, जाति, किला, मृत्यु कब हुई, मूवी, वेब सीरीज [Maharaja Chhatrasal Biography in Hindi] (HistoryCasteWeb SeriesUniversityBirthDeathMovieWeb Series)

महाराजा छत्रसाल उर्फ़ छत्रसाल बुंदेला मध्य युगीन महा प्रतापी राजपूत योद्धा थे। जिन्होंने मुग़ल शासक औरंगजेब को परास्त कर बुन्देलखण्ड को विजित किया और बुन्देलखण्ड में अपनी सत्ता स्थापित कर महाराजा की उपाधि धारण की।

बुंदेलखंड में कई गौरवशाली शासक हुए हैं। चंपराटिया के पुत्र छत्रशाला, जो बुंदेला राज्य के संस्थापक थे, महान शूरवीर और प्रतापी राजा थे। 

महाराजा छत्रसाल का जीवन मुगलों की सत्ता और बुंदेलखंड की आजादी के खिलाफ संघर्ष के लिए लड़ा गया था। महाराजा छत्रसाल अपने जीवन के अंत तक आक्रमणों से जूझते रहे।

महाराजा छत्रसाल का सारा जीवन मुग़लों से संघर्ष में बीता। आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम बुन्देलखण्ड के इस योद्धा Chhatrasal Biography in Hindi – छत्रसाल बुन्देला का जीवन परिचय विस्तार से बताएँगे।

छत्रसाल का जीवन परिचय। Chhatrasal Biography in Hindi

Table of Contents

नाम (Name)छत्रसाल
जन्मदिन (Birthday)4 मई, 1649
जन्म स्थान (Birth Place)कचर कचनई मुग़ल शासन,
टीकमगढ़ जिला मध्यप्रदेश, भारत (वर्तमान में)
उम्र (Age )82 साल (मृत्यु के समय )
मृत्यु की तारीख (Date of Death)20 दिसंबर, 1731
नागरिकता (Citizenship)भारतीय
जाति (Cast )राजपूत
गृह नगर (Hometown)बुंदेला
धर्म (Religion)हिन्दू
पेशा (Occupation)राजा , योद्धा
शासनकाल (Reign)शासनकाल
गुरु का नाम (Guru )प्राण नाथजी
वैवाहिक स्थिति Marital Statusविवाहित

बुंदेलखंड का इतिहास

हम बुंदेलखंड या इसके प्रसिद्ध 17 वीं शताब्दी सीई शासक राजा छत्रसाल बुंदेला के बारे में बहुत कम जानते हैं, जिन्होंने इस भूमि को मुगलों से वापस जीत लिया और यहां एक राज्य स्थापित किया।

आपने उनकी बेटी मस्तानी के बारे में सुना होगा, जिसे मराठा पेशवा, बाजीराव प्रथम के साथ अपने रोमांस का जश्न मनाते हुए 2015 की फिल्म से प्रसिद्ध किया गया था। लेकिन छत्रसाल इस क्षेत्र के इतिहास में और भी अधिक प्रसिद्ध व्यक्ति हैं।

बुंदेलखंड क्षेत्र, जो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच विंध्य पहाड़ों के साथ स्थित है, कभी चंदेल वंश का राज्य था, जिसने 9वीं और 13 वीं शताब्दी के बीच इस क्षेत्र पर शासन किया था। 

चंदेलों ने एक चिरस्थायी विरासत छोड़ी, जिनमें से सबसे प्रमुख उनकी राजधानी खजुराहो में मंदिर हैं, साथ ही कालिंजर और महोबा के किले भी हैं। 13वीं शताब्दी में चंदेल साम्राज्य के पतन के बाद, दिल्ली सल्तनत की सेनाओं के लगातार आक्रमणों के कारण, यह क्षेत्र कई छोटे राज्यों में विभाजित हो गया, जिनमें से कई पर बुंदेला सरदारों का शासन था।

बुंदेलखंड का क्षेत्र
बुंदेलखंड का क्षेत्र

बुंदेलों ने अपनी कहानी हेम करण नामक एक पौराणिक योद्धा के रूप में एक किंवदंती के रूप में खोजी, जिसने एक बार देवी विंध्यवासिनी (इलाहाबाद के पास) को खुश करने के लिए घोर तपस्या की थी।

 ऐसा कहा जाता है कि कई प्रयासों के बावजूद जब उन्हें देवी से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो उन्होंने खुद को उनके चरणों में बलिदान करने का फैसला किया। 

जैसे ही उनके खून की पहली बूंद या वरदान जमीन पर गिरा, देवी विंध्यवासिनी उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें वरदान दिया कि वे और उनके वंशज राजा होंगे।- कबीले का नाम ‘बुंदेला’ हिंदी में ‘बूंद’ या ‘खून की बूंद’ से बना है!

17वीं शताब्दी में विभिन्न बुंदेला प्रमुखों ने मुगल साम्राज्य के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनमें से सबसे प्रमुख बीर सिंह देव बुंदेला थे, जिन्होंने बादशाह अकबर के विश्वासपात्र और जीवनी लेखक अबुल फजल की हत्या कर दी और मुग़ल शासक जहाँगीर के राज्य को विस्तार करने में मदद की।

बीर सिंह देव के वफादार अधिकारियों में से एक चंपत राय बुंदेला (महाराजा छत्रसाल के पिता ) नाम का एक व्यक्ति था, जो और भी महत्वाकांक्षी था और अपना खुद का राज्य बनाने का सपना देखता था। जब तक शाहजहाँ मुगल सिंहासन पर था, चंपत राय अपनी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध का उपयोग कर रहा था।

बीर सिंह देव बुंदेला
बीर सिंह देव बुंदेला

शाहजहाँ के पुत्रों के बीच उत्तराधिकार की लड़ाई के दौरान एक अवसर आया। चंपत राय ने विजेता पक्ष चुना और 1658 में अपने भाई दारा शिकोह के खिलाफ औरंगजेब की जीत में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हालांकि, उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि उन्होंने कितनी भयानक गलती की थी, और औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह कर दिया, जिसने बदले में उन्हें 1661 सीई में मार डाला था।

अफसोस की बात है कि छत्रसाल पर बहुत कम ऐतिहासिक रिकॉर्ड हैं। इतिहासकार डॉ भगवानदास गुप्ता की पुस्तक द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ महाराजा छत्रसाल बुंदेला (1980) सबसे आधिकारिक खाता है । 

डॉ गुप्ता ने छत्रसाल के जीवन को छत्रसाल के जीवन को एक साथ रखा , जो एक दरबारी गाथागीत की स्पष्ट अतिशयोक्ति को ध्यान में रखते हुए, राजा छत्रसाल के एक दरबारी गोर लाल द्वारा लिखित एक गाथागीत है।

महाराजा छत्रसाल का जन्म एवं इतिहास (History)

आज से 400 साल पहले दिल्ली की सल्तनत पर मुग़लों का परचम लहरा रहा था। इस समय औरंगजेब आलमगीर इस सल्तनत का बादशाह था जिसका मंसूबा सम्पूर्ण भारत को फतह करने का था।

हिन्द की पावन धरा इस सुल्तान की क्रूरता से त्राहिमाम हो चुकी थी हर तरफ मृत्यु के नगाड़े बज रहे थे। तभी मध्य भारत से मुग़ल सत्ता के विरुद्ध विद्रोह का शंख फूक दिया गया। महाराजा चम्पतराय के कुशल नेतृत्व में मुग़लों के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया गया।

दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में औरंगजेब ने महाराजा चम्पतराय की पूरी जागीर और खजाने पर कब्ज़ा कर लिया। घोर रात्रि में महाराजा चम्पतराय अपने परिवार सहित विंध्य पर्वत के वनो में चले गए। और मुग़लों के खिलाफ वन वासियों की सेना तैयार की। इस वक़्त पूरा बुन्देलखण्ड रक्त से लाल था।

हर तरफ भय और मौत का तांडव चल रहा था। और यही समय था जब चम्पतराय की पत्नी लाल कुंवरी  ने बुन्देलखण्ड के उस वीर योद्धा छत्रसाल बुन्देला (4 मई 1649) को जन्म दिया जिसने मुग़लों की ईट से ईट बजा दी।

बुन्देलखण्ड के इस महावीर को बुन्देलखण्ड केसरी के नाम से भी जाना जाता है।वनभूमि की गोद में जन्मे, वनों की छांव में पले-बढ़े वनराज के इस योद्धा का जन्म तोप, तलवार और रक्त प्रवाह के बीच हुआ था।

महाराजा छत्रसाल परिवार

पिता का नाम (Father)चम्पत राय
माता का नाम (Mother)लाल कुंवर
भाई का नाम (Brother )अंगद बुंदेला
पत्नी का नाम (Wife )देव कुंवारी एवं रूहानी बाई
बेटे के नाम (Son )शमशेर बहादुर ,हर्दे साह,
अली बहादुर ,जगत राय,
भारती चंद,
बेटी का नाम (Daughter )मस्तानी

छत्रसाल बुंदेला का इतिहास – Chhatrasal History in Hindi

खून खराबे और भयंकर मार-काट के बीच जन्मे छत्रसाल का बचपन घास की रोटियां खाते हुए बीता। कई राते भूखे पेट जमीन पर सो कर गुजारी। तोप, तलवारों तथा मुग़लों से परिचय तो उस नन्हे बालक का बचपन में ही हो गया था। परन्तु मुग़ल कही उनके पुत्र को मार न दे इस भय से महाराजा चम्पतराय और उनकी पत्नी ने नन्हे छत्रसाल को अपने गुरु पंडित नरहरि के पास वृन्दावन भेज दिया।

पुत्र को भेजने के पश्चात् चम्पतराय ने एक बार फिर महादेव को याद करते हुए बुन्देलखण्ड की आजादी के लिए मुग़लों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया।

इस युद्ध में महाराजा चम्पतराय ने अद्भुत शौर्य दिखाया तथा माता लाल कुंवारी रणचंडी बन मुग़लों पर टूट पड़ी। उनकी लाल प्रचंड आँखों ने इतना कहर बरपाया मानो स्वयं माता भवानी युद्ध में अवतरित हो गयी हों। परन्तु लगभग संध्या तक मुग़ल सेना ने सबकुछ तहस नहस कर दिया।

राजा-रानी को कैद करने आगे बढ़ी। इस दृश्य को देख कर राजा चम्पतराय तथा माता लाल कुंवरी ने आत्म बलिदान दे दिया। 

माता-पिता की मृत्यु के समय छत्रसाल मात्र 12 वर्ष के थे। अपने माता-पिता की मृत्यु की खबर सुनते ही छत्रसाल के सीने में रक्त का ज्वार फूट पड़ा। प्रतिघात की ज्वाला ह्रदय में संजोते हुए उन्होंने बुन्देलखण्ड की तरफ कूँच कर दिया। वर्ष 1661 में छत्रसाल बुन्देला पुनः बुन्देलखण्ड आये। परन्तु वह जाये कहाँ उनके घर तथा जागीरों पर तो औरंगजेब ने कब्ज़ा कर रखा था। न घर था न ही माता-पिता।

महाराजा छत्रसाल का विवाह

15 वर्ष की आयु में उनके मामा ने छत्रसाल का विवाह परमार वंश की कन्या देवकुंअरि से करा दिया। यहाँ से छत्रसाल ने अपने जीवन के सफर में आगे बढ़ना शुरू किया और जयपुर जाकर राजा जयसिंह की सेना में भर्ती हो गए।

महाराजा छत्रसाल के गुरु

महाराजा छत्रसाल प्राण नाथजी के शिष्य थे और उन्होंने उन्हें अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया और प्रणामी धर्म को स्वीकार किया। 

वह स्वामी प्राण नाथजी थे जिन्होंने पन्ना की हीरे की खदानों के बारे में एक महान मध्ययुगीन योद्धा राजा छत्रसाल बुंदेला को बताया और इस तरह उनकी वित्तीय स्थिति को मजबूत किया। 

उन्होंने महाराजा छत्रसाल को पन्ना को अपनी राजधानी बनाने के लिए भी राजी किया और वहां उनके राज्याभिषेक की व्यवस्था की।

महाराजा छत्रसाल का एक योद्धा के रूप में जीवन

वर्ष 1664 में औरंगजेब ने राजा जयसिंह को दक्षिण विजय का कार्य सौंपा। और मई 1665 में बीजापुर की विशाल सेना से युद्ध हुआ। इस युद्ध में छत्रसाल को अपनी बहादुरी दिखाने का पहला अवसर मिला।

रणभूमि में इस बुंदेली ने शौर्य का वो परिचय दिया की जयसिंह की आँखे फटी की फटी रह गई। जहाँ जयसिंघ के बड़े-बड़े योद्धा इस युद्ध में मारे गए वहीँ उनका एक सैनिक छत्रसाल भयानक प्रकोप बन शत्रुओं के विनाश पर उतर आया। उसने बीजापुर पर अपनी विजय का ध्वज लहराया।

जब जीत का परचम लहराते हुए ये सेना औरंगजेब के सामने हाजिर हुई तो आमेर के राजा जयसिंह ने इस जीत का सेहरा अपने वीर सैनिक महाराजा छत्रसाल बुंदेला को पहनाना चाहा। परन्तु भरी सभा में औरंगजेब ने इस जीत का श्रेय मुग़ल सिपेसलाहकार को दिया। छत्रसाल ने मुग़लों की बदनीयत समझ जयसिंह की सेना छोड़ दी।

महाराजा छत्रसाल और छत्रपति शिवजी की मुलाकात

जिस समय उधर औरंगजेब हिन्द धरा पर कहर बरपा रहा था। उसी समय हिन्द धरा पर छत्रपति शिवाजी की धमक कायम हो रही थी। उन्होंने दक्षिण भारत में मुग़लों से टक्कर लेने के लिए एक विशाल साम्राज्य खड़ा कर दिया था।

ऐसे में महाराजा छत्रसाल शिवाजी से मिलने दिल्ली से सीधे पुणे की तरफ निकले। परन्तु शिवाजी से मिलना तो दूर उनके इलाके में घुसना भी आसान नहीं था। लेकिन छत्रसाल हर मुश्किल को पार कर शिवजी के पास पहुंचे। महाराज शिवाजी ने छत्रसाल से कहा।

छत्रपति शिवाजी
छत्रपति शिवाजी

करो देस के राज छतारे

हम तुम तें कबहूं नहीं न्यारे।

दौर देस मुगलन को मारो

दपटि दिली के दल संहारो।

तुम हो महावीर मरदाने

करि हो भूमि भोग हम जाने।

जो इतही तुमको हम राखें

तो सब सुयस हमारे भाषें।

वर्ष 1670 में छत्रसाल, शिवाजी से गुरु मन्त्र लेकर पुनः वापस बुन्देलखण्ड आये। परन्तु छत्रसाल के पास न सेना थी और न ही धन। बुन्देलखण्ड की अधिकांश रियासतें भी मुग़लों की मनसबदार बन गए थे। कही से कोई मदद न मिलने पर उन्होंने अपने गहने बेचकर पांच घुड़सवारों और 25 सैनिकों की एक सेना बनाई।

छत्रपति शिवाजी ने अपनी पैतृक भूमि को मुक्त करने के लिए छत्रसाल को भेजा
छत्रपति शिवाजी ने अपनी पैतृक भूमि को मुक्त करने के लिए छत्रसाल को भेजा।

साल 1675 में, महाराजा छत्रसाल अपने स्थानीय गोंड प्रमुख को हराकर पन्ना (वर्तमान मध्य प्रदेश में) के जंगलों में एक राज्य स्थापित करने में कामयाब रहा।

1678 से, औरंगजेब ने हिंदुओं के खिलाफ दमन की नीति लागू की, जैसे जजिया कर लगाना और प्रमुख मंदिरों को तोड़ना। मुगल साम्राज्य में फैले विद्रोहों की एक श्रृंखला का लाभ उठाते हुए, छत्रसाल ने ग्वालियर, कालिंजर और काल जैसे मुगल किलों पर हमले शुरू किए।

कालिंजर किला
कालिंजर किला 

महाराजा छत्रसाल का सेहरा धंदेरा पर हमला एवं खजाने का हाथ लगना –

छत्रसाल ने सबसे पहला हमला अपने माता-पिता के साथ गद्दारी करने वाले सेहरा धंदेरा के राज्य पर किया। यहाँ से छत्रसाल को विजय के साथ-साथ बहुत बड़ा खजाना भी हाँथ लगा।

इस खजाने से छत्रसाल ने अपनी सेना का विस्तार किया। इसके बाद छत्रसाल ने महोनी, मेहेर और पवाया को मिलाकर 12 मुग़ल ठिकानो को अपने अधिकार में कर लिया।

मजह दो वर्ष में ही वीर छत्रसाल बुंदेला ने ग्वालियर के किले पर चढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने नरवर कोही अपने अधिकार में कर लिया। ग्वालियर को जितने के पश्चात् छत्रसाल बुन्देला सीधे औरंगजेब के निशाने पर आ गए।

महाराजा छत्रसाल का औरंगजेब से युद्ध

सन्न 1671 में औरंगजेब ने रणदूलह के नेतृत्व में 30 हज़ार की सेना छत्रसाल को पराजित करने के लिए भेजी। दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। छत्रसाल के नेतृत्व में एक-एक बुंदेली ने मुग़लों को तहस-नहस कर डाला। बचे सारे मुग़ल जान बचाकर दिल्ली भाग गए।

वर्ष 1671 से 1680 तक छत्रसाल ने चित्रकूट से ग्वालियर तक और काल्पी से गढ़कोटा तक की भूमि पर अपना प्रभुत्व जमा लिया था।

महाराजा छत्रसाल की संत प्राणनाथ से मुलाकात

1683 में, बुंदेलखंड के छतरपुर के जंगलों में, छत्रसाल की मुलाकात हिंदू धर्म के प्रणामी संप्रदाय के आध्यात्मिक प्रमुख संत प्राणनाथ नामक एक ऋषि से हुई, जिसके गुजरात और बुंदेलखंड में कई अनुयायी थे। ऋषि छत्रसाल के आध्यात्मिक गुरु बनने के लिए सहमत हो गए और 1694 में उनकी मृत्यु तक बुंदेलखंड में रहे।

यह संत प्राणनाथ ही हैं जिन्होंने छत्रसाल को शाही वैधता प्रदान करते हुए ‘महाराजा’ की उपाधि प्रदान की थी। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, उन्होंने छत्रसाल को वरदान दिया था कि ‘हीरे हमेशा आपके राज्य में पाए जाएं’, जिससे प्रसिद्ध पन्ना हीरे की खदानों की खोज हुई! बुंदेलखंड में आज भी संत प्राणनाथ की पूजा की जाती है।

औरंगजेब की मृत्यु एवं मुगल साम्राज्य के पतन की शुरुआत

औरंगजेब दक्कन में मराठों के खिलाफ युद्ध लड़ने में इतना व्यस्त था कि उसने राजा छत्रसाल पर ध्यान नहीं दिया। 1700 में, मुगलों ने उसे अपने अधीन करने के लिए कई प्रयास किए लेकिन वे हार गए। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हो गया।

विक्रम संवत 1744 में गुरु प्राणनाथ द्वारा वीर छत्रसाल बुंदेला का राज्याभिषेक किया गया। चारों ओर की अराजकता ने छत्रसाल को शांति से शासन करने में सक्षम बनाया। उन्होंने मुगल सम्राट फर्रुखसियर के साथ अपने बढ़िया संबंधों का आनंद लिया।

महाराजा छत्रसाल
महाराजा छत्रसाल

वर्ष 1707 औरंगजेब की मृत्यु तक छत्रसाल बुन्देला ने सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड को आजाद करा लिया। बुंदेली धरा से मुग़लों का नामोनिशान मिटा दिया गया। 

महाराजा छत्रसाल का इलाहबाद के नवाब बंगस से टकराव

1719 में, मुहम्मद शाह ‘रंगीला’ मुगल सम्राट बने। उनके प्रधान मंत्री कमरुद्दीन खान , जो हैदराबाद के पहले निजाम बने, छत्रसाल के घोर विरोधी थे। उनकी सलाह पर, सम्राट ने इलाहाबाद के मुगल गवर्नर मुहम्मद खान बंगश को छत्रसाल के खिलाफ मार्च करने का आदेश दिया, जिससे 1720 और 1729 के बीच बंगश-बुंदेला युद्ध हुआ।

छत्रसाल का पूरा वंश और साम्राज्य दाव पर लग गया। बंगस एक एक कर छत्रसाल के किलों पर मुग़लिया परचम फहराता जा रहा था।

बाजीराव पेशवा से मदद की गुहार लगाना

इस वक़्त राजा छत्रसाल 80 वर्ष के हो चुके थे। और अपने समय में दो बार बंगस को पराजित कर चुके थे। परन्तु अब वृद्ध हो चले उन हांथो में वो जान नहीं रह गई थी।

इसी कारण राजा छत्रसाल ने बाजीराव पेशवा को शिवजी महाराज का वादा याद दिलाते हुए पत्र लिखा। इस पत्र को पढ़ते ही बाजीराव पेशवा ने विशाल सेना के साथ 30 मार्च 1729 को बुन्देलखण्ड की तरफ कूंच कर दी।

बाजीराव और मस्तानी
बाजीराव और मस्तानी

रणभूमि में बाजीराव की उपस्थिति ही विजय का प्रमाण है। इस जंगजू योद्धा के नाम मात्र से ही मुग़ल सेना भयभीत हो जाया करती थी।

इस युद्ध में बाजीराव ने मोहम्मद बंगस की गर्दन काट डाली वही कुछ इतिहासकारों का कहना है की बाजीराव के आने की खबर सुन कर बंगस युद्ध भूमि से भाग निकला।

इस युद्ध में विजय के पश्चात् राजा छत्रसाल घोषणा अब से वह बाजीराव को अपने पुत्र की तरह मानेंगे और अपने राज्य का एक तिहाई हिस्सा देंगे, जिसमें बांदा, झांसी और सागर के वर्तमान जिले शामिल हैं।

 पेशवा बाजीराव इस अनुदान को प्रशासित करने के लिए राज्यपालों की नियुक्ति करेंगे और यह क्षेत्र बाद में झांसी की रियासत में विकसित हुआ। छत्रसाल ने एक उपपत्नी से पैदा हुई अपनी बेटी मस्तानी का हाथ भी बाजीराव को दे दिया। लोकप्रिय संस्कृति में बाजीराव और मस्तानी का रोमांस प्रसिद्ध हुआ ।

बाजीराव प्रथम से महाराजा छत्रसाल का सम्बन्ध

आपने मस्तानी का नाम तो सुना ही होगा। वह बाजीराव प्रथम की दूसरी पत्नी थीं। मस्तानी, राजा छत्रसाल बुन्देला तथा उनकी दूसरी पत्नी रूहानी बेगम की बेटी थीं।

डी जी गोडसे ने अपने मस्तानी नामक ग्रन्थ में बाजीराव प्रथम और छत्रसाल के सम्बन्ध को पिता और पुत्र का सम्बन्ध बताया। 20 दिसम्बर 1731 को मृत्यु के पहले राजा छत्रसाल ने  महोबा और उसके आस-पास का क्षेत्र बाजीराव प्रथम को सौप दिया।

महाराजा छत्रसाल की मृत्यु ( Maharaja Chhatrasal Death )

महाराजा छत्रसाल का 20 दिसंबर 1731 को 82 वर्ष की आयु में निधन हो गया। अपने जीवनकाल में, उन्होंने भारत में असाधारण परिवर्तन देखे थे, उन्होंने मुगलों को शाहजहाँ के अधीन अपनी ऊंचाई पर और मुहम्मद शाह रंगीला के साथ उनके पतन को देखा।उन्होंने बुंदेलखंड में आजादी की लौ भी जलाई थी।

राजा छत्रसाल की मृत्यु के बाद, उनका राज्य उनके पुत्रों में विभाजित हो गया, जिससे पन्ना, अजयगढ़ और चरकरी की रियासतें पैदा हुईं, जो 1947 में भारत में विलय हो गईं।

महाराजा छत्रसाल की समाधि

महाराज छतरसाल की समाधि 18 वीं शताब्दी ईस्वी में बनायीं गयी थी और यह  मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के धुबेला में स्थित है ।इसका द्वार धनुषाकार और सुशोभित है। इसका निर्माण पत्थर की ईंटों और चूने से हुआ था ।

महाराजा छत्रसाल का किला

महाराजा छत्रसाल का किला  छतरपुर – झांसी राजमार्ग पर , मध्य प्रदेश , भारत के छतरपुर जिले में धुबेला के एक पुराने महल में स्थित है जिसे अब  एक संग्रहालय बना दिया गया है । इस किले की स्थापना सितंबर 1955 में छत्रसाल द्वारा अपने निवास के लिए बनाए गए महल में की गई थी।

महाराजा छत्रसाल का किला
महाराजा छत्रसाल का किला

महाराजा छत्रसाल की विरासत

आज यहां सड़कें, कॉलेज और यहां तक ​​कि राजा छत्रसाल के नाम पर एक विश्वविद्यालय भी है। कुश्ती के लिए मशहूर एक प्रमुख स्टेडियम को उत्तरी दिल्ली में ‘छत्रसाल स्टेडियम’ कहा जाता है। महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी की तरह, राजा छत्रसाल बुंदेलखंड की पहचान के प्रतीक हैं, एक मध्ययुगीन नायक जो आज भी इस क्षेत्र के युवाओं को प्रेरित करता है।

महाराजा छत्रसाल वेब सीरीज 2021 (Chhatrasal Web Series)

महाराजा छत्रसाल पर साल 2021 में भारतीय हिंदी भाषा की ऐतिहासिक ड्रामा वेब सीरीज भी बन चुकी है, जो महाराजा छत्रसाल के जीवन पर आधारित है. 

अनादि चतुर्वेदी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में नीना गुप्ता , आशुतोष राणा , जितिन गुलाटी,और रुद्र सोनी ने अभिनय किया है। फिल्म का प्रीमियर और प्रसारण ओटीटी प्लेटफॉर्म एमएक्स प्लेयर  पर 29 जुलाई 2021 को किया गया था।

FAQ

छत्रसाल का मृत्यु कैसे हुआ?

एक लंबी बीमारी की वजह से महाराजा छत्रसाल का 20 दिसंबर 1731 को 82 वर्ष की आयु में निधन हो गया।

महाराजा छत्रसाल के घोड़े का नाम क्या था?

महाराजा छत्रसाल के घोड़े का नाम ”भलेभाई ” था।

महाराजा छत्रसाल के पिता का नाम क्या था?

चंपत राय

छत्रसाल के पुत्र का नाम क्या था?

छत्रसाल के 5 बेटे थे जिनमे शमशेर बहादुर ,हर्दे साह,अली बहादुर ,जगत राय एवं भारती चंद शामिल है।

छत्रसाल के कितने पुत्र थे?

छत्रसाल के 5 पुत्र थे

छत्रसाल की मृत्यु कब हुई?

20 दिसंबर 1731

छत्रसाल बुंदेला के दरबारी कवि का नाम क्या है?

कवि भूषण ,इनके अलावा लाल कवि, बक्षी हंशराज आदि भी थे।

छत्रसाल के गुरु का नाम क्या था?

प्राण नाथजी

शिवाजी ने छत्रसाल को कौन सी तलवार दी?

शिवाजी ने छत्रसाल को जो तलवार दी थी उसका नाम भवानी था।

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अंतिम कुछ शब्द –

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