मिर्जा गालिब का जीवन परिचय , शायरी ,जन्म ,उम्र ,मृत्यु ( Mirza Ghalib Biography in hindi ,Sayari ,qoutes ,Death )
मिर्जा गालिब 19वीं सदी में भारतीय उपमहाद्वीप के प्रसिद्ध उर्दू और फारसी कवि थे। उनका मूल नाम मिर्जा असदुल्ला बेग खान था। उनका मूल नाम असद था लेकिन उन्होंने इसे बदलकर ग़ालिब कर दिया, जिसका अर्थ है ‘विजेता’। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार गालिब की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी।
वह मुगल काल के अंतिम महान कवि थे। वह न केवल भारत और पाकिस्तान में बल्कि , हिंदी भाषी अप्रवासियों के बीच भी लोकप्रिय हैं। उसके जीवनकाल में ही मुगल साम्राज्य का अंग्रेजो द्वारा अंत शुरू हो गया था।
गालिब ने उर्दू से ज्यादा फारसी में लिखा। वह अपनी फ़ारसी कविता और गद्य को अधिक महत्वपूर्ण मानते थे, और वास्तव में, उनकी फ़ारसी रचनाओं से आंका जाना चाहते थे।
हालाँकि उन्हें भारत के अंतिम शास्त्रीय फ़ारसी कवि के रूप में स्वीकार किया जाता है, लेकिन उन्हें उनके उर्दू कार्यों के लिए अधिक प्यार और याद किया जाता है।
अपनी मृत्यु से कुछ साल पहले, ग़ालिब ने 11,000 से अधिक फ़ारसी कविताएँ लिखी थीं, जबकि 1,700 से अधिक उर्दू कविताएँ भी लिखी थीं।
गालिब को शतरंज खेलने, जुआ खेलने और आम खाने का भी शौक था। उनकी जुए की आदतों के कारण 1841 में उनके घर पर छापा पड़ा और 1847 में छह महीने की हिरासत में रखा गया; हालाँकि, उन्होंने जेल में अपनी आधी सजा ही पूरी की।
मिर्जा गालिब का जीवन परिचय
नाम (Name) | मिर्जा असदुल्ला बेग खान |
जन्म का नाम (Birth Name ) | मिर्जा असदुल्ला खान गालिब |
निक नेम (Nick Name ) | ग़ालिब, असद |
उपाधि (Title ) | दबीर-उल-मुल्क, नज़्म-उद-दौला, मिर्ज़ा नोशा |
जन्मदिन (Birthday) | 27 दिसंबर 1797 |
जन्म स्थान (Birth Place) | आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत |
उम्र (Age ) | 71 साल (मृत्यु के समय ) |
मृत्यु की तारीख (Date of Death) | 15 फरवरी 1869 |
मृत्यु का स्थान (Place of Death) | दिल्ली, भारत |
मृत्यु का कारण (Death Cause) | शरीर की कई बीमारिया |
नागरिकता (Citizenship) | भारतीय |
गृह नगर (Hometown) | आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत |
धर्म (Religion) | इस्लाम |
वजन (Weight) | 80 किलो |
आँखों का रंग (Eye Color) | काला |
बालो का रंग( Hair Color) | सफ़ेद |
पेशा (Occupation) | कवि ,शायर |
शैली (Genre) | ग़ज़ल , क़सीदा , रुबाई , किता, मर्सिया |
विषय ( | प्यार, विरह, दर्शन, रहस्यवाद |
वैवाहिक स्थिति Marital Status | विवाहित |
शादी की तारीख (Marriage Date ) | साल 1810 |
मिर्जा गालिब का जन्म (Mirza Ghalib Birth)
मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर, 1796 को आगरा के कला महल में एक सैनिक परिवार में पिता मिर्जा अब्दुल्ला बेग एवं माँ इज्जत-उत-निसा बेगम के यहां हुआ था। उनके पिता ने पहले लखनऊ के नवाब और बाद में हैदराबाद के निजाम की सेवा की।
वह तुर्की मूल के थे । जब वह मात्र 5 साल के थे तब उनके पिता की राजस्थान के अलवर शहर में हुए एक युद्द में मृत्यु हो गयी थी।
मिर्ज़ा ग़ालिब की शिक्षा (Mirza Ghalib Education)
मिर्ज़ा ग़ालिब की पहली भाषा उर्दू थी , लेकिन घर में फ़ारसी और तुर्की भी बोली जाती थी। उन्होंने छोटी उम्र में फारसी और अरबी में शिक्षा प्राप्त की। गालिब ने फारसी-अरबी लिपि में लिखा था जिसका उपयोग आधुनिक उर्दू लिखने के लिए किया जाता है, लेकिन अक्सर उनकी भाषा “हिंदी” कहा जाता है.
जब ग़ालिब किशोरावस्था में थे तब उस समय ईरान से एक धर्म परवर्तित मुस्लिम पर्यटक आगरा आया था। वह दो साल तक ग़ालिब के घर रहा और ग़ालिब को फ़ारसी, अरबी, दर्शन और तर्क पढ़ाया।हालाँकि ग़ालिब ने उर्दू की तुलना में फ़ारसी को महत्व दिया,उनकी प्रसिद्धि उर्दू में उनके लेखन पर टिकी हुई है।
मिर्जा गालिब का शुरुआती जीवन (Early Life )
उनके पिता की मौत के बाद उनके चाचा मिर्जा नसरुल्ला बेग खान ने उनका पालन-पोषण किया, लेकिन 1806 में, नसरुल्ला एक हाथी से गिर गए और गंभीर चोटों से उनकी भी मृत्यु हो गई। और बाद में वह दिल्ली चले गए । ग़ालिब का शुरुआती जीवन उनके पिता की मौत के बाद मिलने वाली पेंशन से गुजरा है।
उन्हें अपनी पेंशन के सिलसिले में कलकत्ता तक भी लंबी दूरी तय करनी पड़ी थी , जिसका जिक्र उनकी ग़ज़लों में कई जगहों पर मिलता है।
मिर्जा गालिब के बारे में एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि उन्हें दो चीजों की कमजोरी थी – शराब पीना और जुआ खेलना। ये दोनों दोष जीवन भर उसके साथ रहे।
हालाँकि उस जमाने में जुए को अपराध माना जाता था, लेकिन गालिब को कभी इसकी परवाह नहीं थी। दरअसल, वे खुद कहते थे कि सही मायनों में वे सख्त मुसलमान नहीं हैं!
विडंबना यह है कि तब किसी ने उन्हें उनका उचित महत्व नहीं दिया और प्रसिद्धि बहुत बाद में आई। आज, वह उर्दू में सबसे अधिक लिखे जाने वाले और सबसे अधिक पढ़े जाने वाले कवि हैं।
मिर्जा गालिब का विवाह एवं पत्नी (Mirza Ghalib Marriage ,Wife)
जब वे तेरह वर्ष के थे तब उनका विवाह लगभग 1810 में एक कुलीन परिवार के नवाब इलाही बख्श (फ़िरोज़पुर झिरका के नवाब के भाई) की बेटी उमराव बेगम से हुआ।
शादी के बाद उनके सात बच्चे हुए थे लेकिन उनमें से कोई भी जीवित नहीं रहा। यह दर्द उनकी ग़ज़लों में साफ झलकता है। उन्होंने अपने एक पत्र में उल्लेख किया कि विवाह दूसरी जेल अवधि थी।
मिर्जा गालिब का संघर्ष (Mirza Ghalib Life Struggle )
गालिब ने पैसे के अभाव में अपना पूरा जीवन बिताया । साल 1857 के बाद जब मुगलो का लगभग खत्म हो गया और अंग्रेजो ने भारत पर अपना कब्ज़ा जमा लिया।
जब ब्रिटिश सरकार ने भारत पर राज करना शुरू किया तब ब्रिटिश सरकार की पेंशन रोक दी गई क्योंकि उन पर विद्रोहियों का समर्थन करने का संदेह था।
उन्होंने पेंशन को फिर से शुरू करने के लिए कलकत्ता की यात्रा भी की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। वह रामपुर के नवाब के पास गया, जिसने उसे रामपुर में रहने पर 200 रुपये और रामपुर के अलावा कही और दूसरी जगह रहने पर 100 रुपये देने का वादा किया। उसके 3 साल बाद उसकी पेंशन फिर से शुरू हुई, लेकिन वह सारा पैसा पुराने कर्ज चुकाने में खर्च हो गया।
मिर्जा गालिब का साहित्यिक कैरियर
ग़ालिब ने सात साल की उम्र से ही शायरी लिखना शुरू कर दिया था और ग्यारह साल की उम्र से ही मुशायरे में शामिल हो गए। तीस वर्ष की आयु तक वे एक कवि के रूप में बहुत प्रसिद्ध हो गए थे।
उन्होंने अपनी पहली शायरी 7 साल की उम्र और अपनी पहली कविता 11 साल की उम्र में लिखी थी और उर्दू, फारसी और तुर्की जैसी कई भाषाओं के उस्ताद थे। उनकी अधिकांश कविताएँ और शेयर असफल प्रेम और उसकी पीड़ा के बारे में हैं।
ग़ालिब उर्दू में लिखी गई अपनी ग़ज़लों के लिए मशहूर हैं। लेकिन वे फारसी भाषा में कविताएं भी लिखते थे। उनकी प्रतिभा कम उम्र में ही खिल उठी थी।
उन्नीस वर्ष की आयु तक उन्होंने अपनी अधिकांश कविताएँ लिखीं। उन्होंने जीवन दर्शन और रहस्यवाद के बारे में भी बहुत कुछ लिखा।
वे स्वयं को और अधिक गहराई में अभिव्यक्त करने में सफल रहे क्योंकि उन्होंने अपने प्रेमी को अपनी कविता में कम महत्व दिया और अपनी भावनाओं और भावनाओं को अधिक महत्व दिया।
शुरुआत में उनकी ग़ज़लों ने प्यार का दर्द बयां किया लेकिन उन्होंने क्षितिज का विस्तार किया। उन्होंने जीवन के असंख्य दर्द और दर्शन को व्यक्त करने के लिए उर्दू भाषा को आगे बढ़ाया। इसने ग़ालिब की शायरी को एक उत्तम दर्जे की शायरी बना दिया।
ग़ालिब के जमाने में उर्दू बहुत ही सामान्य एवं तहजीब के साथ बोले जाने वाली भाषा थी। उन्होंने इसे अपनी शायरी के साथ बनाकर इसे और दिलचस्प बना दिया।
उन्होंने हास्य गद्य की रचना भी की। उनके दोस्तों को लिखे गए पत्र उस हास्य के पर्याप्त प्रमाण हैं। वास्तव में आधुनिक उर्दू भाषा मिर्जा गालिब की कर्ज़दार है। उन्होंने भाषा को सुंदर बनाया और इसे जीवन दिया।
मिर्जा गालिब को प्राप्त शाही उपाधि –
बहादुर शाह जफर द्वितीय द्वारा मिर्जा गालिब को “दबीर-उल-मुल्क” की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उसे बादशाह से “नज्म-उद-दौला” की अतिरिक्त उपाधि भी मिली। सम्राट द्वारा उन्हें दी गई दूसरी उपाधि ‘मिर्जा नोशा’ थी।
मिर्जा गालिब बादशाह के शाही दरबार के दरबारियों में से एक थे। उन्हें सम्राट के कवि और मुगल दरबार के शाही इतिहासकार के रूप में नियुक्त किया गया था।
ग़ालिब राज्य के संरक्षण में रहते थे; उसके पास कभी औपचारिक स्थिर नौकरी नहीं थी। उर्दू भाषा के सबसे प्रतिभाशाली और प्रभावशाली कवियों में से एक माने जाने वाले मिर्जा गालिब का 15 फरवरी 1869 को निधन हो गया। वह अपने जीवनकाल में प्रसिद्धि प्राप्त नहीं कर सके और अपनी मृत्यु के बाद प्रसिद्ध हो गए।
भारतीय निर्देशक गुलजार ने इस महान कवि के जीवन पर मिर्जा गालिब नाम से एक टीवी सीरियल बनाया है। दूरदर्शन पर इसका प्रसारण किया गया था।
मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा लिखे गए पत्र –
ग़ालिब एक उल्लेखनीय पत्र लेखक थे और उन्होंने बोलचाल, आसानी से पढ़े जाने वाले स्पर्श के साथ सजावटी उर्दू लेखन को एक नया आयाम दिया।
उनके शब्दों की पसंद और गद्य के सहज प्रवाह ने पाठक को पत्र से चिपका दिया और इसे पढ़ना दिलचस्प बना दिया। उनके पत्र इतने लोकप्रिय थे कि उनमें से कुछ का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है।
मिर्ज़ा ग़ालिब के ऊपर बनी फिल्में, टीवी शो और मंच नाटक –
इस साहित्यिक प्रतिभा पर भारत और पाकिस्तान दोनों में कई फिल्में और टीवी धारावाहिक बन चुके हैं। इतना ही नहीं, देश भर के विभिन्न थिएटर समूहों ने उनके व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन से संबंधित कई नाटकों का मंचन किया है, जिसमें ग़ालिब के नेतृत्व वाले जीवन के कई चरणों को दर्शाया गया है।
मिर्जा गालिब की मृत्यु (Mirza Ghalib Death)
ग़ालिब की मृत्यु 15 फरवरी 1869 को दिल्ली में उनके घर ग़ालिब की हवेली के रूप में हुई, जिसे अब उनके साहित्यिक कार्यों की प्रदर्शनी के लिए गालिब मेमोरियल में परिवर्तित किया जा रहा है।
गालिब को लोहारू के नवाब के तत्कालीन पारिवारिक कब्रिस्तान में निजामुद्दीन बस्ती में दफनाया गया था; उसकी पत्नी, जो एक साल बाद उसी दिन गालिब (15 फरवरी) को मर गई, उसके बगल में दफन है।
कुछ मीटर दूर 13वीं सदी के सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह है, जो हमेशा अनुयायियों की एक स्थिर धारा से गुलजार रहती है।
इसके अलावा दरगाह के परिसर में 13 वीं शताब्दी के सूफी संगीतकार और कवि अमीर खुसरो की कब्र है, जिन्हें गालिब ने सबसे महान फारसी कवि के रूप में वर्णित किया है।
मिर्जा गालिब की शायरियाँ –
FAQ
गालिब का पूरा नाम क्या है?
मिर्जा असदुल्ला खान गालिब
ग़ालिब का पहला तखल्लुस क्या था?
ग़ालिब का पहला तखल्लुस असद था जो बाद में बदलकर गालिब कर दिया गया।
मिर्जा गालिब कब पैदा हुए थे?
27 दिसंबर 1797
मिर्जा गालिब की कब्र ?
मिर्जा गालिब की कब्र का नाम मजार-ए-गालिब है जो
मिर्ज़ा ग़ालिब कहाँ पैदा हुए थे?
ग़ालिब का जन्म आगरा में एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था।
मिर्जा गालिब के पिता का क्या नाम था?
मिर्जा अब्दुल्ला बेग
सबसे बड़ा शायर कौन है?
मिर्जा गालिब
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अंतिम कुछ शब्द –
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